Wednesday 7 December 2016

धुँधला अक्स

हकीकत की कहानी थी
मोहब्बत से सुनाई थी
नज़र में कोई साया था
नज़र जिसने लुभाई थी

मैं बाकी था कहीं तुझमें
ये मन मेरा बताता है
तू मेरी जिंदगानी में
भी शामिल था, ये गाता है..

बरसती ठंडी रातों की 
बही ठंडी हवाओं से
जो झर झर बहता जाता था..
वो सावन गुनगुनाता है

ठहर जाते थे तब पंछी
छतों पर गुनगुनाने को..
मेरे नग्मों में तेरे लफ्ज
होते हैं, बताने को..

कली बागों की खिलती थी
सुबह रंगीन करती थी...
पहर शब का निराला था
वो शम्मा ख़ूब जलती थी..

चाँद करता था निगरानी
जुगनुएँ खेल करती थीं..
चाँदनी आके आँगन में
हमारे जिस्म मलती थी...

वो मौसम और वो रातें
कहाँ बाकी हैं अब बोलो
तुम्हें कोई मोहब्बत की
कहानी याद हो, बोलो

के अब कोई मुसाफिर अजनबी
सा है मेरे दिल में
नहीं करता जो अब शिकवा
वो धुँधला अक्स है दिल में.. 

कहे कोई के मेरे हो तो
मैं फिर से ठहर जाऊँ..
मोहब्बत ना सही लेकिन
मैं उस रस्ते गुज़र जाऊँ..
                       

कहानी-- फासला

पिछली दफा जब वो मिलकर आया था निदा से.. तो हफ्तों तक खाना अच्छा नहीं लगा था उसे ..
उसने देखा था खिड़की से निदा की थाली में झाँककर.. एक सूखी रोटी, जो आधी उसी थाली पड़ी पानी-पानी सी दाल में भीग चुकी थी।
चार सालों से, निदा को वापस लाने की उम्मीद से वह पागलखाने के चक्कर लगा रहा था..और मिलता क्या... हर बार सिर्फ नाकामी !!
कुछ सालों पहले निदा गिड़गिडाती थी .. हमीद जितना जल्दी हो सके... वापस आ जाना..
हमीद का जवाब होता - "मैं कोशिश करूँगा निदा..  यहाँ अम्मी अब्बू हैं, आपा के बच्चे मेरे बगैर रहते नहीं.. एक बार आपा को उनके सुसराल भेज दूँ, नौशाद भी भाईजान ये काम, वो काम करता रहता है..... तुम चिंता न करो, मैं आ जाऊँगा "
निदा हमीद से बेइंतहा प्यार करती , उसके बिना जैसे दिन रात थम जाते थे.. और हमीद को घरवालों की खिदमत से फुर्सत ना मिलती !
ये दूरी और नाउम्मीदी निदा के सब्र पर भारी पड़ती गयी । धीरे धीरे चिड़चिड़ाहट और घबराहट बढ़ने लगी... हमीद की जिम्मेदारियाँ ख़त्म ना हुईं !
निदा को अब खाने पीने, घर परिवार और खुद की भी खबर ना रहने लगी .. !
और फिर, हमीद जब जिम्मेदारियों से फुर्सत पा वापस आया भी तो, निदा निदा नहीं रह गयी थी.. !! हमीद को अंदाज़ा ही नहीं था कि ये फासला इतना लंबा हो जायेगा, कि जिसपर सफर करते करते वह उसी राह में निदा को खो देगा..!
अब, अब हमीद उसी घर में निदा का इंतज़ार उसी बेसब्री से कर रहा है, जैसे कभी निदा किया करती थी.... 

Sunday 6 November 2016

पलकें



देखो कभी इक बार झाँककर
मेरी निश्छल आँखों में ..
क्या रक्खा है झूठी दुनिया में...
और दुनिया की उड़ती राखों में..

मेरी आँखों की खिड़की से...
देखो मन मेरा, देखो अंदर की हस्ती को
छूकर रो दोगे तुम मुझको,
भूलोगे हँसती बस्ती को..

चाहोगे निकलना जब बाहर..
अँधेरे कोनों से डरकर
सोचोगे मुझे मैं क्या हूँ और क्यूँ..
फिर देखोगे मुझे आँखें भर भर

अधखुली खिड़कियों से भी तो
आते हैं स्वप्न लगाकर पंख..
ये वो पंछी हैं जिनके ऊपर..
ना छत कोई ना है कोई कर

खिड़कियाँ यूँ ही बस बनी रहीं..
जाने क्या आना बाकी है
ना बंद हुईं ना खुली रहीं
अब कौन प्रतीक्षा बाकी है ?

तुम वो कहानी लिखो..

मैं किरदार हूँ जिसका.. तुम वो कहानी लिखो

लिख दो तकदीर मेरी किसी कागज के टुकड़े पर..
लगा दो रंग मेरे कागजी मुखड़े पर ...
सुन लो उन आवाज़ों को जो कैद हैं काली स्याही में..
बिखरी बिखरी साँसों की रवानी लिखो..
तुम वो कहानी लिखो ....

रहा गाफ़िल मैं अपने एहसासों से
करता रहा उम्मीद ठंडक की.. सिर्फ प्यासों से..
तुम लिखो गीली मिट्टी.. बारिश सुहानी लिखो
तुम वो कहानी लिखो ...

मेरे चंद जख्मों की परवाह न करना
कुरेद देना फिर से, हाँ, आह न करना..
फिर सीकर दोबारा लफ्ज़ों में
जख्मों की जवानी लिखो,
तुम वो कहानी लिखो

वो किताब तुम सरेआम कर देना
महफिल में मुझे बदनाम कर देना
कह देना मुझे पागल.. दीवानेपन की निशानी लिखो

तुम वो कहानी लिखो
मैं किरदार हूँ जिसका

Karne Do...

Mai kho jata hun aksar unhi khwaabon mein,
Jo chhuu kar guzrate hain tere khwaabon ko..

Kyun hai aisaa.. mujhe sawaal karne do..

Aa jaaun tum tak tumse bina puchhe
Uljhaa dun tumhe apne sawaalon ke pichhe,
Fanaa kar dun khud ko tum mein

Kuchh yun pareshaan karne do..

Ae Dil !!

Sadaaein aati rehti hain door se sabr rakhnaa...
Ae dil ! Tu ghabrana mat...

wafaayein laazim hain par zara door se,
Saath dena mera, tu ghabraana mat
Utaar lenaa hoga mujhe khud ko uski nazro'n se...
Tu thamm saa jaana.. ghabraana mat
Nikaal kar tujhe uske dil se laaungaa mujh tak... sabr rakh..

Tu tuut naa jaana.. ae dil !  Tu ghabraana mat
Deewaano'n ki mehfil mein rehte rehte...
Deewana jo ho gaya hai tuu...

Tujhe samajhtaa hun mai.. ae dil ! tu ghabraana mat..

Sunday 16 October 2016

TO SHOR KYUUN HO

Jo hum karein aitebaar
To shor kyuun ho
Jo hum karein intezaar
To shor kyuun ho

Kya nahi aate ab koi sailaab
Kya poore nahi hote ab khwaab
Manzilein milein naa milein...
Mil to jaayeinge...
Naqaamiyon ke jawaab

Jo Hum chalein raah pe bebaak ...
To shor kyuun ho..





Saturday 15 October 2016

तब्दीली

नीरजा ने खुद को आईने में देखा...
आँसू पोछे, चश्मा लगाया, घड़ी उठाई और चल पड़ी..

रेस्टोरेंट पहुँचकर.....
खूबसूरत लड़की से-

 "हाय बानी .. लुकिंग ब्यूटिफुल इन सारी...."

"थैंक्स.. बट....डू आई नो यू ?"

"मैं नीरज "
वो बैठते हुए बोली -

"क्क क्या ???"

-"हाँ , नीरज....नीरजा, कुछ भी कहो । मैं जानता थी, आई मीन जानती थी, तुम मुझे पसंद करती हो लेकिन....
बानी.. मुझे लड़का होना अभिशाप लगता था.. इसलिये लड़की बन गयी... अब यही पहचान है मेरी ... "

बानी उसे देखती ही रह गयी ।

-"मैं खुश हूँ नीरज.... तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम दुनिया से लड़े .....औ.. र ..."
उसका गला भर आया....

दोनों देर तक खुशी और दर्द के घेरे में बैठे रहे...!


विश्राम- एक बोध

परमार्थ करना अच्छा है पर क्या अपने परिवार को कष्ट देकर ?
तारा चारपाई पर बैठी घंटो से इसी उधेड़बुन में लगी है ! 
माँ-बाप ने तीर्थ ही घर बना लिया, भाई पर उसकी ज़िम्मेदारी डालकर....
और भाई.... प्रेम में असफल होने के बाद वैरागी बना जाने कहाँ फिरता होगा .. ।  
कहता था सब मोह माया है ।
प्रेम की असफलता से उपजे मोह के वशीभूत होकर ही यह मार्ग चुना था...और ये तर्क !!

तारा बेमन से उठी,  द्वार तक गई.....शायद कुछ आहट हुई थी.. ।
देखा साधु है कोई ....तारा की ही तरह वृद्ध..

साधु - " तारा ! मुझे विश्राम चाहिये अब "
तारा रो पड़ी..पहचान गयी ।

Friday 30 September 2016

हाल

हवाओं से हम पूछ तो लें हाल तुम्हारा ..
डरते हैं.. बदले में क्या हम बता पायेंगे ?

चाहते हैं बाँट लेना हर गम तुम्हारा...
पर हम तुम्हें अपने गम ना दे पायेंगे

तुम रहो तुम्हारी दुनिया में..बेफिक्र होकर
हम बस याद कर तुम्हें बेचैन हो जायेंगे..

जाते-जाते...मुड़कर देखा ही क्यूँ था तुमने
तुम जानते थे...हम तुमको ना भूल पाएँगे...

हद-ए-वीरान तक फिरता था दिल आवारा...
अब पास है तुम्हारे.. वापस ना ला पायेंगे

Ajnabeeyat

Har simt aawazein pehchaani hain
Par ilm nahin, shaklein anjaani hain

Kahin koi pukaare.. hum bulaate hain
Kahin hum nihaarein.. sab duur jaate hain..

Ajeeb hain lamhe jo guzar rahe hain..
Hum hum hi se dar rahe hain...
Kahin ye badhawasi pair naa jama le..
Hum bekhud ho jayein aur kahin dil laga lein..
Qadam chalte chalte ab thehar rahe hain

Zindagi ke saaye to hain dikhaayi dete
Zindagi ke qadam lekin nazar nahin aate....

हर सिम्ट आवाज़ पहचानी हैं..
पर इल्म नहीं, शक्लें अंजानी हैं

कहीं कोई पुकारे.. "हम बुलाते हैं"
कहीं हम निहारें..सब दूर जाते हैं

अजीब हैं लम्हें जो गुज़र रहे हैं...
हम, हम ही से दूर रह रहे हैं

कहीं ये बदहवासी पैर ना जमा ले ...
हम बेखुद हो जायें और 'फिर' दिल लगा लें
कदम चलते चलते अब ठहर रहे हैं...

ज़िंदगी के साये तो हैं नज़र आते...
कदम ज़िंदगी के लेकिन..नज़र नहीं आते

Saturday 17 September 2016

नीली धूप

एक शाम फिर से क़रीब आ रही
आवारगी, नाराज़गी...कुछ तो करने अजीब आ रही

इल्ज़ाम फिर से किसी और पे आयेगा...
करती है मदहोश....
 अब और, करने आ रही

एक टेबल, दो कप, दो कुर्सियाँ हैं
कोई नहीं है...हवा की सरसराहट ही चुस्कियाँ हैं

यहाँ झाँकती है धूप नीली नीली

टकराकर झरोखों से, सुबह शाम अकेली,..
मैं भी इस्तक़बाल करता हूँ, सज़दे में झुक जाता हूँ..

मुस्कुराता हूँ उस पर, सभी परदे हटाता हूँ....


बिठाता हूँ नज़दीक ख़ुद के, और तन्हाई मिटाता हूँ

Tuesday 30 August 2016

Tum thamm kyunn nahin jaati..

Vo nibhaati rahi hai saath mere hone se
Basi hai mujhme.. par naa jaane kis kone mein
Roz koshish karti rahi hu usey pakad lene ki..
Vo fisalti rahi..kabhi mere jagne.. to kabhi mere soney mein
Har roj aainey mein dhhuundha hai aankh bhar bhar ...
Aur chhuuti hui ko dhhuundha hai puraane khilaune mein..
Uff...tum kabhi thamm kyun nahin jaati ho
Dheere dheere chali jaati ho.. maut ke bichhaune mein ...
Ta'Umr chaaha hai tujhe ae umr ...
Tum chhod kar saath.. beet jaogi mere aakhiri baar sone mein ..

Monday 29 August 2016

Roj Thodaa Thodaa

Roj roj kahan se laaun tumhe
Roj tum thode thode kam hote jate ho
Roj sahejti hun tumhe dil ke tehkhaane mein
Roj dhoop ka tukda..churaa le jaata hai tumhe thoda
Roj ginti hun tumhare vaadon ko..raat me baithkar..
Roj neend chheen le jaati hai raat.. le aati hai din thoda
Roj sajti hain vahi mehfilein is ghar mein ab bhi..
Roj aati hain darwaajey se khushiyaan.. aur khidki se gham thoda..
Roj roti hai aankhein deewaarein dekh kar ..
Roj kam hoti hai nazar.. aur tham jata hai dil thoda ..
Roj ghuumta hai chaand aawara baadalon mein..
Roj le jaata hai sooraj udhaar maang kar din thoda ..
Roj karti hun shikwey tumse bhi ... aur khud se bhi to ..
Roj fir bhool kar giley saare..  kam kar leti hun bharam thoda ..
Roj chuskiyaan tehalti hain shaam ko usi koney mein ..
Roj aata hai khidki par panchhiyon kaa vahi jodaa

रोज रोज कहाँ से लाऊँ तुम्हें
रोज तुम थोड़े थोड़े 'कम' होते जाते हो ..
रोज सहेजती हूँ तुम्हें दिल के तहखाने में..
रोज धूप का टुकड़ा चुरा ले जाता है तुम्हें थोड़ा ..
रोज गिनती हूँ तुम्हारे वादों को..रात में बैठकर ..
रोज नींद ले जाती है रात..ले आती है दिन थोड़ा..
रोज सजती हैं वही महफिलें इस घर में अब भी ..
रोज आती हैं दरवाज़े से खुशियाँ और खिड़की से ग़म थोड़ा
रोज रोती हैं आँखें दीवारें देखकर..
रोज कम होती है नज़र और थम जाता है दिल थोड़ा ..
रोज घूमता है चाँद आवारा.. बादलों में ..
रोज ले जाता है सूरज..माँग कर अँधेरा थोड़ा ..
रोज करती हूँ शिकवे तुमसे और खुद से भी तो ..
रोज भूलकर गिले सारे .. और कम कर लेती हूँ भरम थोड़ा ..
रोज चुस्कियाँ टहलती हैं शाम को उसी कोने में ..
रोज आता है खिड़की पर पंछियों का वही जोड़ा ..

Yuu'N karna nahi'N thaa

Bezubaan si khwahishon ko pakadna nahi tha ..
Ab dekho sehami si chhip gayi hain kahin ..
Kyun aise bitaayi raat jaag kar raat bhar ..
Ab neendein dhhuundhne se nahi mil rahin hain kahin
Kyun rahne di muhabbat dil ke kisi koney mein ..
Ab chaahtein bhatak gayin hain vaapsi ki raahein kahin ..
Kyun nahi rukh mod liya vaqt rahte nahaasil tamannao'n se ..
Ab to baaki hai sirf intezaar.. aur tanhaaiyaa'n baaki hain kahin ..

Aa gayi dophar

Gungunati hui.. tumhe dhhuundhti hui dophar chali aati hai
Tum to miltey hi nahi kabhi kisi ko ..
Yhaa'n mai akela hi rehta huu'n jab jab vo aati hai ..
Ittefaaq hai zara ajeeb sa
Ke dophar ke saath hi tumhaari yaad daudti chalii aati hai ...
Mai'n darkinaar kar so jaana chahta hu'n jab jab...
Kambakht neend bhi dheere se dagaa de jaati hai....
Safed chaadar si fail jaati hai andar aur baahar ye dopharr..
Jaati hi nahii.. jab tak andheri shaam bulaane nahin aati hai

Tuesday 19 July 2016

संग अँधेरों के

मुझे आहट नहीं होती अब कोई
कदाचित् सत्य मरने वाला है मुझमें
अँधेरों से वार्ता भी होती रहती है..
अपनी तरह एकांत नहीं छोड़ना चाहता उन्हें

जब स्पर्श करती है रात मुझे
सिहरन सी दौड़ती है..शिराओं में
उत्तेजित होता है जब चन्द्रमा..
सितारे मलीनता धारण कर लेते हैं
सिर्फ़ सुनाई देती है फिर उल्काओं की ध्वनि

अनायास चला जाता हूँ मैं उनके साथ..
रात इस प्रकार दूर होती जाती है..
परंतु तिमिर क्षितिज तक संग चलता है
भाता है उसे मेरा संग..
मुझसे की गयी वार्ता....
ना जाने किस घड़ी से साथ हुआ है वो मेरे..
वापस भेजना चाहता हूँ उसे..
स्वयं से दूर..

मैं तो प्रकाश पुँज था..
शोषित कर लिया जिसने उसे..
दिन निकलते ही छिप जाता है मुझमें
करता प्रतीक्षा रात की..

मैं निरीह, उपेक्षित, सोचता स्वयं को..
हो जाता हूँ सबके अधीन..
नहीं सोच पाता अधिक...स्वयं के बारे में..
यह चेतनाशून्य सा हृदय...
अनवरत अँधकुँज में क्रंदन कर पुकारता है..
रक्त राख की भाँति उड़ता है..
सदेह अग्नि में उपस्थित होने का आभास..
सिंचित करता है ताप, एवं..
अन्य आभासों को नष्ट कर देना चाहता है..
कदाचित् इसीलिये..
मुझे आहट नहीं होती अब कोई !!

Wednesday 13 July 2016

...Ishq Karo

Mujhse nahi mere alfaazo'n se ishq karo,
Jismo'n se uth kar zazbaato'n se ishq karo....

Rahna h 'gar zinda meri chaahat me

Yakeen karo mujh pe, meri yaado'n se ishq karo

Bagaawat karo....
zurrat karo raahon par bhatakne ki.

Nayi raaho'n ki adaawat se ishq karo

Saahil pe kashti utraao, bahne do use
Bahakne do kashtii ko dil bhar.... bahkaane wali leharo'n se ishq karo

Tuesday 12 July 2016

बंदिशें

दरख्तों पर कुछ लिखे ख्वाब दिखायी देते हैं
जो मिले नहीं अब तलक, 
दूर से वो जवाब सुनाई देते हैं...

तुम क्या समझो उनके एहसासों को
जिनके खोये हुए अफ़साने
ख़ुद आकर उनको बधाई देते हैं

बंदिशों के मोहताज़ हैं जो लोग
खुले आसमाँ में भी उनको
अँधेरे कारागार दिखाई देते हैं

ज़िंदगी मिली हो हमेशा ख्वाबों में,
मिल जाये अगर जिंदगी
तो हज़ार खड़े सिर्फ सवाल दिखाई देते हैं

Wednesday 1 June 2016

कहना चाहता हूँ

बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ...

फेहरिस्त ख्वाहिशों की बड़ी हो गयी ज्यादा
जिंदगी समेट ना सकी..
मुश्किलें खड़ी हों गयीं ज्यादा,

मिल सके सुकून....
उस मुकाम पर पहुँचना चाहता हूँ,
बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ...!

दर बदर भटके उम्मीदों को लिये,
खुशियाँ बेचीं ग़ैरों को.....
घूमता हूँ अब खाली रसीदों को लिये,

कोई सामान मैं भी जीने का खरीदना चाहता हूँ..
बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ..

आरज़ू है, हर हद करूँ पार जो ज़माने को गवारा ना हो,
रुकूँ नहीं तेरे मिलने तक, या जब तलक तेरा इशारा ना हो,

मौत तो मिली ही है मुझे हर दफा....
अब जिंदगी की गोद में बहकना चाहता हूँ...
बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ...!!

दिन दिन करके कुछ बिखरता रहा,
यादों से मैं, मुझसे तू जुड़ता रहा.....
किस्मतें क्यों नहीं होतीं लिबास
मैं बदलना चाहता हूँ,.....

बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ

Tuesday 31 May 2016

मैं तुम्हें लिखूँ

 जब होश मेरे कहीं खो जायें,
जब ख़्वाबों  का कहीं ठिकाना न रहे
जब छोड़ दें साथ साये....
मैं तुम्हें लिखूँ....

बरबाद होने लगें किरदार हकीकत में,
धोखे मिलने लगें सभी अपनों से,
संभाल कर रक्खूँ तुम्हें अपनी अमानत में....
फिर तुम्हें लिखूँ !

टकरायें आवाजें दीवारों से,
हर लफ़्ज गिर पड़े हताश होकर,
गूँजें सन्नाटा दिशाओं चारों से..
तब तुम्हें लिखूँ!

बेतरह बिखरे बाल शिकायतें करें,
थके जिस्म को इत्मिनान की आरज़ू जगे,
धड़कनें रुकें, साँसें अदावत करें....
मैं तुम्हें लिखूँ......!!!

Sunday 29 May 2016

Seela Takiyaa

Raat kuchh saaman chhod gayi hai pichhe,
Lekin meri neendo ko lekar sath gayi,
Kion seela hai takiya... Humne to suna tha ki barsaat gayi,

Jagne walon ki koshish rahi nakaam aise,
Hairan hain ki khuli aankhon mein tere khwaab aaye kaise,

Subah hogi to fir khyaal koi naya sa hoga,
Socha tha yehi lekin...tum hi thehre ho raat se aankhon mein,
Fir kuchh aur meri aankhon se nazar aaye kaise,

Baat zamane ki iss dil ko hum samjhayein kaise,
Chahta tha ki kar luunga woh dil se har zirah,
Hum dil se... dil humse magar haar jayein kaise,

Aur 'gar haar b jaayein to ye khud ko batayein kaise,
Ki jeete koi bhi... Hamari aadaton se tu lekin jayega nahin,
Jo tujhme haara hai vo dil se bhulaayein kaise,

Kaise hoga mumkin ki iss raah se ab kahin aur mera mud jana hoga,
Hoga kuchh bhi magar naa kahin aur na kisi se mera jud paana hoga,

Hum milenge... shayad isliye hi usne abtalak bichhadne na diya
Raahein niklin thin nayi, un raahon se guzarne naa diya,

Khuda kaash ek din aisa kar jaye...
Tu maange mujhe, aur fir mujhe tu mil jaye,
Raat ho gayi bahut lambi ye... Hona chahiye ki ab yahan din khil jaye,

 Dhoop ki chaadar odhe, koi sath mere jab hoga,
Tu hoga haasil to haasil rabb hoga,

Jaane kitne tareeqon se tujhe maanga hai,
Sach bata kya tune mujhe maanga hai?
Ya shayad koi dhoka h, ya fr koi tera bahaana hai,

Thak gaya hun Mija... Ab shayad sukoon aankh moond kar hi aana hai..

Wednesday 25 May 2016

आँखें

My favorite and first Swalekha Topic
________________________________________
#आँखें.   

प्रेम की भाषा जटिल, समझ सकै ना कोय
मन पल पल विचलित करे, नैन देत हैं रोय

गिरत उठत दो नैनन की जोड़ी..
थोड़ी है लाज, बरबस है थोड़ी

बहोत है इंतज़ार, कब वो शाम आयेगी
दिल है बेकरार, आँखें क्या पैगाम लायेंगी

पैगाम ए मुहब्बत को हम वो मुकाम दे दें
खामोश रहें हम, आँखों आँखों में सलाम दे दें

नैन मिले या ना मिलें, मोहे पिया मिलें इक बार
जीवन जीना छोड़ दूँ, मैं मर जाऊँ सौ बार...

बेचैन हो रोती हैं, कहती कुछ ना, ना सोती हैं
जाने क्यों बात नहीं सुनती, अपनी ही ज्योति खोती हैं..

संभल कैसे जाऊँ, क्यों बात सुनूँ तेरी
देखा क्यों उसे, कहती हैं आँखें मेरी


नैनन से वार करूँ, कलम से कर दूँ हार
वाणी को विराम दे, निद्रा को दे द्वार.     ;)    ;p

Wednesday 18 May 2016

Bas Bane Rahnaa

Bas bane rahnaa

Duaa koi bhi kare, kahin bhi kare
Tum bas "meri" ibaadaton me bane rahnaa..

Jism se rooh tak, jo chal padi hai daastan
Un qisson ki deewangii me bane rahnaa

Nihaaroon mai us tarah se k bas tum hi tum dikho
Meri nazron ki aawaragi me bane rahnaaa

Chhoo lena kabhi neendon me aakar mujhe
Din chadhe to yaad rakhna, Sahar se shaam karna, 
khwaabon me bane rahnaa

Hona naa duur kabhi..
khyaal rakhna..."Dil" ki dil se khabar rakhna,  
Thoda waqt dena "aur"  yaadon me bane rahnaa..

Bas bane rahnaa





Thursday 12 May 2016

कहाँ तक...

कहाँ तक
चलोगे, मेरे साथ कहाँ तक

राहों की अटकलें राहें छिपायेंगी
रंजिश है मुझसे, तुमसे निभायेंगी
मंजिल अपनी फ़लक बन जायेगी
साथ दोगे कहाँ तक

सदियाँ बितायी हैं जैसे कुछ सालों में
ज़ाया, जी भर किया है वक्त तालों में
मेरी हसरत, तुम्हारी कैद बन जायेगी
साथ रहोगे कहाँ तक

ख्वाहिशें साँसों की मरीज़ ना हो जायें
बेफिक्री, बंदिशों की अजीज़ ना हो जायें
डर है, किस्मतें बंद किताब बन जायेंगी
   साथ निभाओगे कहाँ तक

करीने से जिंदगी चल रही होगी 
खुशी होगी, राह मिल रही होगी. ..!
फिर, दिल्लगी बेहिसाब हो जायेगी
कोई साथ था, बताओगे कहाँ तक

चलोगे मेरे साथ कहाँ तक....



Kahaan tak
Chaloge mere saath kahaan tak

Raahon ki atkalein raahein chhipayengi
Ranjish hai mujhse, tumse nibhaayengi...
Manzil apni falaq ban jaayegi,
     Saath dogay kahaan tak..

Sadiyaan bitaayi hain kuchh saalon me,
Zaaya, jee bhar kiya hai waqt taalon me...
Meri hasrat tumhari qaid ban jayegi..
     Saath rahogey kahaan tak

Khwaahishein, saanson ki mareez naa ho jaayein,
Befikri, bandishon ki ajeez na ban jaayein...
Darr hai...qismatay band kitaab ban jaayeingi...
Saath nibhaogey kahaan tak..

Kareene se zindgi chal rahi hogi,
Khushi hogi, raah mil rahi hogii..
Fir dillagi behisaab ho jayegi..
   Koi tha saath, bataaoge kahaan tak

Chalogey mere sath kahan tak..

ना तोड़ो

ना तोड़ो

वो शज़र जिसकी छाँव में कोई खेला था,
सूखा है अब, साँसे कुछ बाकी हैं...
साया है कुछ पत्तियों का, ना तोड़ो..

वो रखी हुई कलम कभी लिखती थी,
जिसमें कुछ शब्द, कुछ एहसासात रहे थे..
उस स्याही की बोतल को, ना खोलो

मकाँ की दहलीज़ पे फरिश्ते आते थे,
रौनक थी बेशुमार, दीवारें बोलती थीं..
अब है वो ज़ार-ज़ार, दहलीज ना छोड़ो ,

माँ हो गई है बूढ़ी, बाप रहता है बीमार
खामोश रहते हैं, नहीं है कोई तलबगार
सहारा हो तुम, उनसे यूँ मुँह ना मोड़ो..

हाँ ! कोई इश्क भी था तेरे आस पास,
चाहत थी, और बगावत भी थी साथ..
सब हैं कहाँ, उनसे रिश्ता ना तोड़ो 

ना तोड़ो ..!!

Wednesday 11 May 2016

Khyaal

सोये हों ख़याल अँधेरी रात में
बारिश की खुशबू दरवाज़े पर आये

भीगी भीगी सी कोशिशों से तुम मुझे मनाना
राज़ बेपर्त करना दिलों के, धीरे से मुस्कुराना...!!!


Soye hon khyaal andheri raat me..
Baarish ki khushbu darwaazey par aaye..

Bheegi bheegi koshishon se tum mujhey manaana
Raaz bepart karna dilon ke..
Haule se muskuraana

Tuesday 10 May 2016

आज बारिश है

आज बारिश है
सारे ख़्वाबों को भिगोने,
सारी हसरतों को इक धागे में पिरोने की साजिश है
आज बारिश है

बरस रहे हैं बादल कुछ बेरुखी से
पूछा भी नहीं इक बार जमीं से
बस कर ऐ बादल, जमीं की गुजारिश है..
आज बारिश है.

बहलाकर लाये हैं बादल पानी को साहिल से
जो बरसा है टूटकर दीवानी घटाओं से मिल के
अब फिर कभी आना , दीवानों की सिफारिश है

आज बारिश है

क्या करें क्या न करें

आँखें बोलें मेरी तुम्हें देखा करें,
आहें बोलें मेरी तुम्हें चाहा करें...
            कश्मकश है बड़ी, तुम्हें लेकर हमें,
             कि इबादत करें या कि शिकवा करें..

इश्के उल्फ़त पर फ़ना होने वाले सभी,
दिवानों के संग हम बैठा करें...
        अक़ीदत है फिर भी, क़यामत है ये
        उनकी सोहबत से कुछ भी ना सीखा करें

गुज़रना पड़ा था इक गली से कभी
उस गली को ही मंज़िल अब जाना करें

मुस्कुराहट तो जैसे कि खिलती किरन 
हम चोरी छिपे नज़रें सेंका करें
         बेरुख़ी भी तुम्हारी ग़जब ढा रही...
          तुझमें क्या है  अलग हम सोचा करें,
        
तस्वीरें कई हैं, मेरे घर में तेरी...
बड़ी शिद्दत से उनको संभाला करें,
          हो जाओगे बेफ़िक्र अपना वादा है ये
          इससे बढ़कर तुम्हें क्या बताया करें

तौल लेना कभी तुम शराफ़त मेरी
वफ़ा बेवजह हम ना गाया करें
         कर लीं हैं बहुत...मिन्नतें अब तेरी
         तेरी मर्जी है ...जो तू ना आया करे

देख लेना मगर, ग़र ज़रूरत पड़े....
तेरा हक़ है, मुझे तू बुलाया करे..!

Monday 9 May 2016

Munaasib hai

Raahon ke guzarne pe gham kaisa
Aage badhna hi munasib hai

Manzilon ki chaah rahti hai sabko
Daur to aate jaate rahte hain...
Gham-E-daur bhi aana munasib hai

Tu akela kabhi tha hi nahi..
Pal pal kuchh saaye, pichha karte rahe hain
Ab un saayon ka saaya padna munasib hai

Rahi zindgi hairan, pareshaan zindgi bhar
Gar,  zindadili hi zindaa rahi 
To tera zindaa rahna munasib hai



बाकी था, बाकी है..

तुम आये, हमने देखा,
     तुमने बोला, हमने सुना...
फिर क्या, मेरे साथी रह गया था !
      
      हर वक्त, हर लम्हा,
       हर सांस, हर साज़...
 सब तुमसे और तुम्हारा हो गया था !
       
        कुछ रातें, कुछ बातें,
        कुछ अनकही सौगातें...
देनी हैं तुम्हे, जो बाकी रह गया था !
        
        हम बेबस, हम पागल,
        हम बेचैन,हम घायल...
सब हुए थे हम, और मन जज़्बाती रह गया था !
        
        एक इकरार, एक इज़हार,
        ज़िंदगी भर का इंतज़ार..
ही बाकी था "हमेशा", और अब भी बाकी रह गया था..!!

       

Saturday 7 May 2016

माँ

हे ! जननी...
इस जीवन का है भार बड़ा
ये जीवन तेरा साया है,
   तेरे साये की छाँव तले....
   रहना है....कर उपकार बड़ा ।

हे ! जननी ...
ज्यों पंछी बिना परों के हों,
ज्यों रात अमावस वाली हो..
   ज्यों सूर्यग्रहण का दिन हो वो
   तेरे बिन मैं हूँ, रिक्त घड़ा ।

हे ! जननी..
तूने पाला, तूने समझा,
तूने ही मुझे सँवारा है...
    तेरे ऊपर क्या लिक्खूँ मैं
    नतमस्तक हूँ, एकान्त खड़ा

हे! जननी....

जो संग वो खड़ी थी

जो संग वो खड़ी थी..

मेरे जन्म की वो शुभघड़ी थी
मैं रोया था जब, तो वो रो पड़ी थी
जो संग वो खड़ी थी

पाठशाला से पहले गुरू वो मिली थी
हर जुबाँ याद हैं ज्यों, अभी कल पढ़ी थी
जो संग वो खड़ी थी

बड़ा जब हुआ मैं, हमराज़ बन गई वो
कही दिल की सब, जो जरूरी बड़ी थीं
जो संग वो खड़ी थी

सिरहाने आज भी वो, बैठ जाती है जब
लगे हर बला भी, हाथ जोड़े खड़ी थी

जो संग "माँ" खड़ी थी...

कुछ की कमी हो गई

कुछ मिला तो ..'कुछ' की कमी हो गयी
आँखें सूखी ही थीं, कि फिर शबनमी हो गई

 जुस्तजू तो हकीकत में कुछ भी नही
 बेवजह ख्वाहिशों की जमीं हो गयी

मुकर्रर हुईं थीं, हमारे लिये
उन गिरहों की फिर से लड़ी हो गयीं

बाखबर, बासबब सब तो रहते हुए
बेशिकन ही रहे, तुम हमीं हो गये

चमकते हुए रास्तों पर जो गये
वो राहें अचानक....अनमनी हो गयीं

जिस्म लेकर हमारा, हम कब तक चलें
जिस्म जर्जर, तो रूहें थकी हो गईं....।


Friday 6 May 2016

Baat

Kitni shaamein guzri hain
Kitni subahein beet gayin
Vo baat jahan par thahri thi
Vo baat vahin par baith gayi

     

Thursday 5 May 2016

रुक जाओ अभी..

रुक जाओ अभी कुछ कहना है
थम जाओ अभी कुछ कहना है...
उस दिन की बात अधूरी है
इस रात का भी कुछ कहना है..

 अब जब तुम पास मेरे हो तब,
कुछ समझ नहीं बाकी मुझमें....
मैं क्या बोलूँ, क्या ना बोलूँ, 
इस बात का फिर से रोना है ।

जज्बात मेरे तुम जान गये ,
फिर भी तुम क्यूँ चुप बैठे हो !
 जो कहना है, तुम ही कह दो ...
ये लम्हा अब ना खोना है ।

इन हाथों को क्यों बाँधे हो...
क्या भूल गये, क्या बोला था!
 "मेरे हाथों को लेकर तुमको..
मेरी आँखों में खोना है..."

एक बार जरा तुम छू लो तो
सारी मुश्किल हल हो जाये
मेरी  साँसों को साँस मिले
जिन साँसों को अब खोना है

रुक जाओ अभी कुछ कहना है ।
थम जाओ अभी कुछ कहना है....!!





मगर

1. 
क़ब्र पर सिर रखने से क्या होगा...
कोई रहता है वहीं पर उठता नहीं !

2.
मुक़म्मल जहाँ में शिक़वे हज़ार हैं
ग़मज़दा हैं सब, कोई कहता नहीं !

3.
उस मोड़ से मुड़ती है ज़िंदग़ी इस क़दर..
रात दिखती है मगर, दिन होता नहीं..!

4.
निगाहों ने देखें हैं नज़ारे कई
जो चाहा मगर वो दिखता नहीं....!!

कोयल :)(:

चंचल पत्तों से हो हताश,
बोली कोयल करके विलाप...

क्यों तुम मुझ पर हँसते हो,
     मेरा कोई, न घर न बार..!
परिहास सदा क्यों करते हो
    
हर पंछी का है अपना राग,
    मैं हूँ श्यामा, है मधुर राग...!
वृक्षों पर बैठ कर करती हूँ 
इस जग का नित नया साज
    
बस हृदय लुभाती हूँ सबका,
    करती न नीड़ का इक प्रयास..

हर साल नये तुम उगते हो.
फिर मुझसे शोभा पाते हो

  फिर क्यों तुम मुझ पर हँसते हो


बोलो ये कैसा हो

   तुमसे तुमको माँगा है
   बोलो ये कैसा हो,

रंग भरे अरमानों पर, 
कुछ गीत प्यार के सज जायें..
   उन रंगीले गीतों में भी, 
   कोई अफसाना तुम सा हो

अंजानी बातों से ही,
आने वाला कल पहचानें ...
हम आज जियें, हम आज मरें
फिर ना जाने कल कैसा हो..
   
 रुख़ मोड़ लिया जब दुनिया से,
     फिर तुम क्यूँ आये आगे..
अब सोच लिया हमने ऐसा,
कोई साथ हमारे तुम सा हो

 देखो तुम भी कुछ समझो तो !
  अपनी बंजारन धड़कन से..
वो बोल रही "तुम भाग रहे" 
ना कोई तुम्हारे जैसा हो...
  
तुम भी दे दो, ख़ुद को मुझको
   फिर कोई अफसाना हो वो,
जो दरिया साहिल जैसा हो..!!
  
तुमसे तुमको माँगा है,
अब बोलो ये कैसा हो..!!

'Gar aisa Hota

बंजारों से दौड़ते ख़यालों को काफ़िला मिलता,
रूह को, बदन के बंधनों से फ़ासला मिलता
  नज़र आता कोई अंधेरे में भी ग़र....
रात को आफ़ताब का आसरा मिलता..!

क़िताबों की तहों में दफ़न हैं जो फूल,
साँस लेकर उन्हें, बिखरने का हौसला मिलता..

जज़्बा ए ज़िक्र की सरेआम तौहीन न होती,
गुल-ए-यकीं ग़र , हमारे दरम्यां खिलता....
दिलों के सौदे को यूँ हीं नहीं किया करते..
जाकर देख ऐ पागल ! दूजी दुनिया में
जहाँ ख़ुदा भी समझकर फ़ैसले करता..!     

कब तक

कब तक ज़िद लिये बैठे रहोगे
     वहाँ नूर है, जन्नतों का समाँ है
     उसकी रूह पर ख़ुदा का इमाँ है
यादें उसकी लिये रोते रहोगे

हर शख्स यहाँ आया है, कुछ पल के लिये
राह छोड़ेगा वो, फिर ना मिलने के लिये
   कब तक गुमराह तुम होते रहोगे
   कब तक ज़िद लिये बैठे रहोगे

 आसमाँ के सिकंदर को मना पाना मुमकिन नही
सोचोगे,
तुम पा लोगे उसे लेकिन नहीं
   जर्ज़र जिस्म लिये थकते रहोगे
   कब तक ज़िद लिये बैठे रहोगे

 कभी ख़्वाब देख लेना, भले झूठा ही सही
दिल को संभाले रखना, वो टूटा ही सही
    हो दुनिया में तो दिखते रहोगे
    कब तक......

Thursday 28 April 2016

सड़क किनारे

आँख में आंसू, होंठों पर हँसी है
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है
प्रतिपल इक आस है, कोई इंसा समझेगा,
हाथ पकड़ लेगा शायद,
खुदा का निशाँ समझेगा
झटक दे हाथ राही,
 तो मुँह फेर ले अभिमानी
हा! अफसोस बहोत होता है...
इंसानियत, इंसा पर हँसी है ।।
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है...!!!
हथेलियों को फैलाकर
वह कोई
अपराध नहीं करता,,पर उपेक्षा......उसे
उसके जन्म पर सवाल सी लगी है.....!!!


Wednesday 27 April 2016

हम तुम

तुम वो मृग.....जो 'मुझे' सारे जहाँ में ढूँढे....,

मैं वो कस्तूरी.....जो सिर्फ 'तुझमें' ही मिले...