Wednesday 1 June 2016

कहना चाहता हूँ

बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ...

फेहरिस्त ख्वाहिशों की बड़ी हो गयी ज्यादा
जिंदगी समेट ना सकी..
मुश्किलें खड़ी हों गयीं ज्यादा,

मिल सके सुकून....
उस मुकाम पर पहुँचना चाहता हूँ,
बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ...!

दर बदर भटके उम्मीदों को लिये,
खुशियाँ बेचीं ग़ैरों को.....
घूमता हूँ अब खाली रसीदों को लिये,

कोई सामान मैं भी जीने का खरीदना चाहता हूँ..
बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ..

आरज़ू है, हर हद करूँ पार जो ज़माने को गवारा ना हो,
रुकूँ नहीं तेरे मिलने तक, या जब तलक तेरा इशारा ना हो,

मौत तो मिली ही है मुझे हर दफा....
अब जिंदगी की गोद में बहकना चाहता हूँ...
बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ...!!

दिन दिन करके कुछ बिखरता रहा,
यादों से मैं, मुझसे तू जुड़ता रहा.....
किस्मतें क्यों नहीं होतीं लिबास
मैं बदलना चाहता हूँ,.....

बहुत कुछ है, जो कहना चाहता हूँ