Thursday 5 May 2016

कब तक

कब तक ज़िद लिये बैठे रहोगे
     वहाँ नूर है, जन्नतों का समाँ है
     उसकी रूह पर ख़ुदा का इमाँ है
यादें उसकी लिये रोते रहोगे

हर शख्स यहाँ आया है, कुछ पल के लिये
राह छोड़ेगा वो, फिर ना मिलने के लिये
   कब तक गुमराह तुम होते रहोगे
   कब तक ज़िद लिये बैठे रहोगे

 आसमाँ के सिकंदर को मना पाना मुमकिन नही
सोचोगे,
तुम पा लोगे उसे लेकिन नहीं
   जर्ज़र जिस्म लिये थकते रहोगे
   कब तक ज़िद लिये बैठे रहोगे

 कभी ख़्वाब देख लेना, भले झूठा ही सही
दिल को संभाले रखना, वो टूटा ही सही
    हो दुनिया में तो दिखते रहोगे
    कब तक......

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