Saturday 21 January 2017

उलझनें

उलझनों के त्योहार तो निराले होते हैं
मनाते हुए भी नहीं मनाये जाते..
कौन होली खेले जज़्बातों से
कौन दिये जलाये हालातों के..

उलझनें तो बस उलझनें हैं

अंदर ही अंदर पनपती, चहकती..
उछलती, खुद में जश्न मनातीं..
और मुँह खोले..
धीमी रफ्तार से
जहन-ओ-जिस्म को
चुनती हुईं
जुगाली करती हैं सारी मिल बैठकर
ये "अश्वत्थामा" हैं..
अमर हैं
खत्म नहीं होतीं.. रूप बदलती हैं
हर दिन नया रूप, नयी पहचान लेकर
पहचान, उलझी सी..
हजारों सर्प जैसे गुँथे हों आपस में.
ना छोर, ना कोई पकड़
लगातार विष उगलती..डसतीं,
फिर से रूप बदलने की कोशिश करतीं...

Thursday 12 January 2017

Darr

Jab nhi dikhayi deti hai parchhayin tak..
Aas paas kahin
Dhadkan bhari ho is khauf se..
Ki kahin vo anjana sa dar,
Naa aa jaye saamne..
Us pal..
Jo aata h saamne, dost ho ya dushman..
Rakh kar apni anaa, apni shaakh ko taak par..
Jalne lagte hain hum..
Dheemi dheemi lau mein..
Dhadkanon ka bhaaripan
Dhuaan ban kar udne lagta hai
Maan lete hain dushman ko bhi humraaz..
Hawaale kar dete hain uske
Apni dil ki sooni haweli ko..

Aur fir...
Fir, kuchh palon baad...
Mehsoos ho jati hai vo galti
Jo kabhi nahi ki jaani thi..
Kabhi nahin..!!
Vo aag, vo bhaaripan,, jo pehchaan tha..
Vajood tha.....
Kho chukaa hotaa hai.. !!


जब नहीं दिखाई देती है परछाईं तक..
आस पास कहीं..

धड़कन भारी हो इस ख़ौफ़ से,
कि कहीं वो अंजाना सा डर,
ना आ जाये सामने..
उस पल...
जो आता है सामने,दोस्त हो या दुश्मन..
रख कर अपनी अना..
अपनी शाख़ को ताक पर
जलने लगते हैं हम..
धीमी धीमी लौ में..
धड़कनों का भारीपन..
धुआँ बनकर उड़ने लगता है,,
उस पल ..
मान लेते हैं दुश्मन को भी हमराज़
हवाले कर देते हैं उसके..
अपने दिल की सूनी हवेली को...

और फिर,
फिर कुछ पलों बाद...
महसूस हो जाती है वो ग़लती..
जो कभी नहीं की जानी थी,
कभी नहीं..!!
वो आग, वो भारीपन.. जो पहचान था..
वजूद था..
खो चुका होता है...

Friday 6 January 2017

मेरे मालिक !

जिस दिन परदे का उठना होगा..
मेरा क़िरदार से बाहर आना होगा
उतरकर मंच से..
उतारकर नक़ाब को
हाथ उस शख्स से मिलाकर
एक बार पूछूँगा मुस्कराकर..

कहो! कुछ बाकी रह गया क्या ?
मैंने जी लिया वो किरदार
रो लिया, हँस लिया.. और,
हँसाया, रुलाया तमाम चेहरों को..
क्या अब भी कुछ बाकी है ??
देखो,, कितना इत्मिनान महसूस हो रहा है..
होने दो अभी..
कुछ पल तो सुकून से, सोने दो अभी..
हाँ, जो गलतियाँ इस किरदार में कर दी हैं मैंने..
हरजाना तो देना होगा..
पूरा वो करने के लिये..
किसी किरदार में, फिर से आना होगा..!

बस दरख़्वास्त मेरे मालिक एक मान लो !
दे दो साथ फिर से उन्हीं साथियों का...
जो साथ थे मेरे उसी मंच पर..
जो अब है सूना, मेरे यहाँ होने पर

हो सके तो किरदार छोटा देना...
थक गया था इस बार.. थोड़ी मोहलत देना..
देना ऐसा, कि सबकी आँखों में पानी हो..
जब वापस लौटूँ...
 मैं उन्हें, वो मुझे पुकारें...
मेरे वहाँ ना होने पर..
मुझे रूहानी शोहरत देना !!