Saturday 15 October 2016

तब्दीली

नीरजा ने खुद को आईने में देखा...
आँसू पोछे, चश्मा लगाया, घड़ी उठाई और चल पड़ी..

रेस्टोरेंट पहुँचकर.....
खूबसूरत लड़की से-

 "हाय बानी .. लुकिंग ब्यूटिफुल इन सारी...."

"थैंक्स.. बट....डू आई नो यू ?"

"मैं नीरज "
वो बैठते हुए बोली -

"क्क क्या ???"

-"हाँ , नीरज....नीरजा, कुछ भी कहो । मैं जानता थी, आई मीन जानती थी, तुम मुझे पसंद करती हो लेकिन....
बानी.. मुझे लड़का होना अभिशाप लगता था.. इसलिये लड़की बन गयी... अब यही पहचान है मेरी ... "

बानी उसे देखती ही रह गयी ।

-"मैं खुश हूँ नीरज.... तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम दुनिया से लड़े .....औ.. र ..."
उसका गला भर आया....

दोनों देर तक खुशी और दर्द के घेरे में बैठे रहे...!


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