Wednesday 7 December 2016

कहानी-- फासला

पिछली दफा जब वो मिलकर आया था निदा से.. तो हफ्तों तक खाना अच्छा नहीं लगा था उसे ..
उसने देखा था खिड़की से निदा की थाली में झाँककर.. एक सूखी रोटी, जो आधी उसी थाली पड़ी पानी-पानी सी दाल में भीग चुकी थी।
चार सालों से, निदा को वापस लाने की उम्मीद से वह पागलखाने के चक्कर लगा रहा था..और मिलता क्या... हर बार सिर्फ नाकामी !!
कुछ सालों पहले निदा गिड़गिडाती थी .. हमीद जितना जल्दी हो सके... वापस आ जाना..
हमीद का जवाब होता - "मैं कोशिश करूँगा निदा..  यहाँ अम्मी अब्बू हैं, आपा के बच्चे मेरे बगैर रहते नहीं.. एक बार आपा को उनके सुसराल भेज दूँ, नौशाद भी भाईजान ये काम, वो काम करता रहता है..... तुम चिंता न करो, मैं आ जाऊँगा "
निदा हमीद से बेइंतहा प्यार करती , उसके बिना जैसे दिन रात थम जाते थे.. और हमीद को घरवालों की खिदमत से फुर्सत ना मिलती !
ये दूरी और नाउम्मीदी निदा के सब्र पर भारी पड़ती गयी । धीरे धीरे चिड़चिड़ाहट और घबराहट बढ़ने लगी... हमीद की जिम्मेदारियाँ ख़त्म ना हुईं !
निदा को अब खाने पीने, घर परिवार और खुद की भी खबर ना रहने लगी .. !
और फिर, हमीद जब जिम्मेदारियों से फुर्सत पा वापस आया भी तो, निदा निदा नहीं रह गयी थी.. !! हमीद को अंदाज़ा ही नहीं था कि ये फासला इतना लंबा हो जायेगा, कि जिसपर सफर करते करते वह उसी राह में निदा को खो देगा..!
अब, अब हमीद उसी घर में निदा का इंतज़ार उसी बेसब्री से कर रहा है, जैसे कभी निदा किया करती थी.... 

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