बंजारों से दौड़ते ख़यालों को काफ़िला मिलता,
रूह को, बदन के बंधनों से फ़ासला मिलता
नज़र आता कोई अंधेरे में भी ग़र....
रात को आफ़ताब का आसरा मिलता..!
क़िताबों की तहों में दफ़न हैं जो फूल,
साँस लेकर उन्हें, बिखरने का हौसला मिलता..
जज़्बा ए ज़िक्र की सरेआम तौहीन न होती,
गुल-ए-यकीं ग़र , हमारे दरम्यां खिलता....
दिलों के सौदे को यूँ हीं नहीं किया करते..
जाकर देख ऐ पागल ! दूजी दुनिया में
जहाँ ख़ुदा भी समझकर फ़ैसले करता..!
रूह को, बदन के बंधनों से फ़ासला मिलता
नज़र आता कोई अंधेरे में भी ग़र....
रात को आफ़ताब का आसरा मिलता..!
क़िताबों की तहों में दफ़न हैं जो फूल,
साँस लेकर उन्हें, बिखरने का हौसला मिलता..
जज़्बा ए ज़िक्र की सरेआम तौहीन न होती,
गुल-ए-यकीं ग़र , हमारे दरम्यां खिलता....
दिलों के सौदे को यूँ हीं नहीं किया करते..
जाकर देख ऐ पागल ! दूजी दुनिया में
जहाँ ख़ुदा भी समझकर फ़ैसले करता..!
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