Friday 30 September 2016

हाल

हवाओं से हम पूछ तो लें हाल तुम्हारा ..
डरते हैं.. बदले में क्या हम बता पायेंगे ?

चाहते हैं बाँट लेना हर गम तुम्हारा...
पर हम तुम्हें अपने गम ना दे पायेंगे

तुम रहो तुम्हारी दुनिया में..बेफिक्र होकर
हम बस याद कर तुम्हें बेचैन हो जायेंगे..

जाते-जाते...मुड़कर देखा ही क्यूँ था तुमने
तुम जानते थे...हम तुमको ना भूल पाएँगे...

हद-ए-वीरान तक फिरता था दिल आवारा...
अब पास है तुम्हारे.. वापस ना ला पायेंगे

Ajnabeeyat

Har simt aawazein pehchaani hain
Par ilm nahin, shaklein anjaani hain

Kahin koi pukaare.. hum bulaate hain
Kahin hum nihaarein.. sab duur jaate hain..

Ajeeb hain lamhe jo guzar rahe hain..
Hum hum hi se dar rahe hain...
Kahin ye badhawasi pair naa jama le..
Hum bekhud ho jayein aur kahin dil laga lein..
Qadam chalte chalte ab thehar rahe hain

Zindagi ke saaye to hain dikhaayi dete
Zindagi ke qadam lekin nazar nahin aate....

हर सिम्ट आवाज़ पहचानी हैं..
पर इल्म नहीं, शक्लें अंजानी हैं

कहीं कोई पुकारे.. "हम बुलाते हैं"
कहीं हम निहारें..सब दूर जाते हैं

अजीब हैं लम्हें जो गुज़र रहे हैं...
हम, हम ही से दूर रह रहे हैं

कहीं ये बदहवासी पैर ना जमा ले ...
हम बेखुद हो जायें और 'फिर' दिल लगा लें
कदम चलते चलते अब ठहर रहे हैं...

ज़िंदगी के साये तो हैं नज़र आते...
कदम ज़िंदगी के लेकिन..नज़र नहीं आते

Saturday 17 September 2016

नीली धूप

एक शाम फिर से क़रीब आ रही
आवारगी, नाराज़गी...कुछ तो करने अजीब आ रही

इल्ज़ाम फिर से किसी और पे आयेगा...
करती है मदहोश....
 अब और, करने आ रही

एक टेबल, दो कप, दो कुर्सियाँ हैं
कोई नहीं है...हवा की सरसराहट ही चुस्कियाँ हैं

यहाँ झाँकती है धूप नीली नीली

टकराकर झरोखों से, सुबह शाम अकेली,..
मैं भी इस्तक़बाल करता हूँ, सज़दे में झुक जाता हूँ..

मुस्कुराता हूँ उस पर, सभी परदे हटाता हूँ....


बिठाता हूँ नज़दीक ख़ुद के, और तन्हाई मिटाता हूँ