Tuesday 31 May 2016

मैं तुम्हें लिखूँ

 जब होश मेरे कहीं खो जायें,
जब ख़्वाबों  का कहीं ठिकाना न रहे
जब छोड़ दें साथ साये....
मैं तुम्हें लिखूँ....

बरबाद होने लगें किरदार हकीकत में,
धोखे मिलने लगें सभी अपनों से,
संभाल कर रक्खूँ तुम्हें अपनी अमानत में....
फिर तुम्हें लिखूँ !

टकरायें आवाजें दीवारों से,
हर लफ़्ज गिर पड़े हताश होकर,
गूँजें सन्नाटा दिशाओं चारों से..
तब तुम्हें लिखूँ!

बेतरह बिखरे बाल शिकायतें करें,
थके जिस्म को इत्मिनान की आरज़ू जगे,
धड़कनें रुकें, साँसें अदावत करें....
मैं तुम्हें लिखूँ......!!!

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