Saturday 15 October 2016

विश्राम- एक बोध

परमार्थ करना अच्छा है पर क्या अपने परिवार को कष्ट देकर ?
तारा चारपाई पर बैठी घंटो से इसी उधेड़बुन में लगी है ! 
माँ-बाप ने तीर्थ ही घर बना लिया, भाई पर उसकी ज़िम्मेदारी डालकर....
और भाई.... प्रेम में असफल होने के बाद वैरागी बना जाने कहाँ फिरता होगा .. ।  
कहता था सब मोह माया है ।
प्रेम की असफलता से उपजे मोह के वशीभूत होकर ही यह मार्ग चुना था...और ये तर्क !!

तारा बेमन से उठी,  द्वार तक गई.....शायद कुछ आहट हुई थी.. ।
देखा साधु है कोई ....तारा की ही तरह वृद्ध..

साधु - " तारा ! मुझे विश्राम चाहिये अब "
तारा रो पड़ी..पहचान गयी ।

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