Wednesday 7 December 2016

धुँधला अक्स

हकीकत की कहानी थी
मोहब्बत से सुनाई थी
नज़र में कोई साया था
नज़र जिसने लुभाई थी

मैं बाकी था कहीं तुझमें
ये मन मेरा बताता है
तू मेरी जिंदगानी में
भी शामिल था, ये गाता है..

बरसती ठंडी रातों की 
बही ठंडी हवाओं से
जो झर झर बहता जाता था..
वो सावन गुनगुनाता है

ठहर जाते थे तब पंछी
छतों पर गुनगुनाने को..
मेरे नग्मों में तेरे लफ्ज
होते हैं, बताने को..

कली बागों की खिलती थी
सुबह रंगीन करती थी...
पहर शब का निराला था
वो शम्मा ख़ूब जलती थी..

चाँद करता था निगरानी
जुगनुएँ खेल करती थीं..
चाँदनी आके आँगन में
हमारे जिस्म मलती थी...

वो मौसम और वो रातें
कहाँ बाकी हैं अब बोलो
तुम्हें कोई मोहब्बत की
कहानी याद हो, बोलो

के अब कोई मुसाफिर अजनबी
सा है मेरे दिल में
नहीं करता जो अब शिकवा
वो धुँधला अक्स है दिल में.. 

कहे कोई के मेरे हो तो
मैं फिर से ठहर जाऊँ..
मोहब्बत ना सही लेकिन
मैं उस रस्ते गुज़र जाऊँ..
                       

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