Wednesday 26 July 2017

मेरा अंतस घबराकर पुकारता है तुम्हें

मेरा अंतस घबराकर पुकारता है तुम्हें
नेत्र एकटक द्वार पर स्थिर हो जाते हैं
हृदय के पट खड़-खड़ की ध्वनि से संपूर्ण तन स्पंदित कर देते हैं
तुम्हारे पूर्व आश्वासनों का मुझे विस्मरण हो चुका है
यह कदापि मेरी भूल नहीं...
तुम तो एक स्तंभ की भाँति मेरे हृदयस्थल में विराजमान हो..
परंतु तुम्हारी आशा के विपरीत....
मैंने गँवा दिया वह कौशल
कि पा सकूँ तुम्हें निर्विवाद ....
और तुम ... तुम मेरी आशा के विपरीत ..
निरे कठोर ही रहे...!



Sunday 23 July 2017

जीवन रात्रि

कमनीय रात्रि के अवसर पर
जैसे कोई नवयौवना 
बैठी हो...
सुंदर वस्त्र, आभूषणों से लिपटी, ढकी..
कर रही हो प्रतीक्षा
शेष रात्रि के समापन की..
  समस्त बंधनों, माया से लिपटी
  पवित्र, अनछुई आत्मा..
  उसी भाँति प्रतीक्षारत है..
जीवनरूपी रात्रि की समाप्ति पर,
अगाध संदेह, समर्पण, स्वाभिमान बटोरे...
क्या बीत जायेगी रात्रि निश्चेष्ट ही ?
या संभवतः..
कुछ आनंदित क्षण एवं,
कुछ भौतिक संघर्ष भी चल पड़ेंगे साथ ...
   रात्रि के अंत तक !
'आभूषण' कदाचित प्रदान करते हैं सुंदरता, वैभव
किंतु
रात्रि के अँधेरों में,
सुखद कलापों हेतु..
उतार देना ही श्रेयस्कर है इन्हें !!