Tuesday 10 May 2016

क्या करें क्या न करें

आँखें बोलें मेरी तुम्हें देखा करें,
आहें बोलें मेरी तुम्हें चाहा करें...
            कश्मकश है बड़ी, तुम्हें लेकर हमें,
             कि इबादत करें या कि शिकवा करें..

इश्के उल्फ़त पर फ़ना होने वाले सभी,
दिवानों के संग हम बैठा करें...
        अक़ीदत है फिर भी, क़यामत है ये
        उनकी सोहबत से कुछ भी ना सीखा करें

गुज़रना पड़ा था इक गली से कभी
उस गली को ही मंज़िल अब जाना करें

मुस्कुराहट तो जैसे कि खिलती किरन 
हम चोरी छिपे नज़रें सेंका करें
         बेरुख़ी भी तुम्हारी ग़जब ढा रही...
          तुझमें क्या है  अलग हम सोचा करें,
        
तस्वीरें कई हैं, मेरे घर में तेरी...
बड़ी शिद्दत से उनको संभाला करें,
          हो जाओगे बेफ़िक्र अपना वादा है ये
          इससे बढ़कर तुम्हें क्या बताया करें

तौल लेना कभी तुम शराफ़त मेरी
वफ़ा बेवजह हम ना गाया करें
         कर लीं हैं बहुत...मिन्नतें अब तेरी
         तेरी मर्जी है ...जो तू ना आया करे

देख लेना मगर, ग़र ज़रूरत पड़े....
तेरा हक़ है, मुझे तू बुलाया करे..!

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