Sunday 16 October 2016

TO SHOR KYUUN HO

Jo hum karein aitebaar
To shor kyuun ho
Jo hum karein intezaar
To shor kyuun ho

Kya nahi aate ab koi sailaab
Kya poore nahi hote ab khwaab
Manzilein milein naa milein...
Mil to jaayeinge...
Naqaamiyon ke jawaab

Jo Hum chalein raah pe bebaak ...
To shor kyuun ho..





Saturday 15 October 2016

तब्दीली

नीरजा ने खुद को आईने में देखा...
आँसू पोछे, चश्मा लगाया, घड़ी उठाई और चल पड़ी..

रेस्टोरेंट पहुँचकर.....
खूबसूरत लड़की से-

 "हाय बानी .. लुकिंग ब्यूटिफुल इन सारी...."

"थैंक्स.. बट....डू आई नो यू ?"

"मैं नीरज "
वो बैठते हुए बोली -

"क्क क्या ???"

-"हाँ , नीरज....नीरजा, कुछ भी कहो । मैं जानता थी, आई मीन जानती थी, तुम मुझे पसंद करती हो लेकिन....
बानी.. मुझे लड़का होना अभिशाप लगता था.. इसलिये लड़की बन गयी... अब यही पहचान है मेरी ... "

बानी उसे देखती ही रह गयी ।

-"मैं खुश हूँ नीरज.... तुममें इतनी हिम्मत है कि तुम दुनिया से लड़े .....औ.. र ..."
उसका गला भर आया....

दोनों देर तक खुशी और दर्द के घेरे में बैठे रहे...!


विश्राम- एक बोध

परमार्थ करना अच्छा है पर क्या अपने परिवार को कष्ट देकर ?
तारा चारपाई पर बैठी घंटो से इसी उधेड़बुन में लगी है ! 
माँ-बाप ने तीर्थ ही घर बना लिया, भाई पर उसकी ज़िम्मेदारी डालकर....
और भाई.... प्रेम में असफल होने के बाद वैरागी बना जाने कहाँ फिरता होगा .. ।  
कहता था सब मोह माया है ।
प्रेम की असफलता से उपजे मोह के वशीभूत होकर ही यह मार्ग चुना था...और ये तर्क !!

तारा बेमन से उठी,  द्वार तक गई.....शायद कुछ आहट हुई थी.. ।
देखा साधु है कोई ....तारा की ही तरह वृद्ध..

साधु - " तारा ! मुझे विश्राम चाहिये अब "
तारा रो पड़ी..पहचान गयी ।