Saturday 7 May 2016

जो संग वो खड़ी थी

जो संग वो खड़ी थी..

मेरे जन्म की वो शुभघड़ी थी
मैं रोया था जब, तो वो रो पड़ी थी
जो संग वो खड़ी थी

पाठशाला से पहले गुरू वो मिली थी
हर जुबाँ याद हैं ज्यों, अभी कल पढ़ी थी
जो संग वो खड़ी थी

बड़ा जब हुआ मैं, हमराज़ बन गई वो
कही दिल की सब, जो जरूरी बड़ी थीं
जो संग वो खड़ी थी

सिरहाने आज भी वो, बैठ जाती है जब
लगे हर बला भी, हाथ जोड़े खड़ी थी

जो संग "माँ" खड़ी थी...

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