Thursday 28 April 2016

सड़क किनारे

आँख में आंसू, होंठों पर हँसी है
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है
प्रतिपल इक आस है, कोई इंसा समझेगा,
हाथ पकड़ लेगा शायद,
खुदा का निशाँ समझेगा
झटक दे हाथ राही,
 तो मुँह फेर ले अभिमानी
हा! अफसोस बहोत होता है...
इंसानियत, इंसा पर हँसी है ।।
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है...!!!
हथेलियों को फैलाकर
वह कोई
अपराध नहीं करता,,पर उपेक्षा......उसे
उसके जन्म पर सवाल सी लगी है.....!!!


Wednesday 27 April 2016

हम तुम

तुम वो मृग.....जो 'मुझे' सारे जहाँ में ढूँढे....,

मैं वो कस्तूरी.....जो सिर्फ 'तुझमें' ही मिले...