आँख में आंसू, होंठों पर हँसी है
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है
प्रतिपल इक आस है, कोई इंसा समझेगा,
हाथ पकड़ लेगा शायद,
खुदा का निशाँ समझेगा
झटक दे हाथ राही,
तो मुँह फेर ले अभिमानी
हा! अफसोस बहोत होता है...
इंसानियत, इंसा पर हँसी है ।।
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है...!!!
हथेलियों को फैलाकर
वह कोई
अपराध नहीं करता,,पर उपेक्षा......उसे
उसके जन्म पर सवाल सी लगी है.....!!!
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है
प्रतिपल इक आस है, कोई इंसा समझेगा,
हाथ पकड़ लेगा शायद,
खुदा का निशाँ समझेगा
झटक दे हाथ राही,
तो मुँह फेर ले अभिमानी
हा! अफसोस बहोत होता है...
इंसानियत, इंसा पर हँसी है ।।
ज़िंदगी तू उन गरीबों में बसी है...!!!
हथेलियों को फैलाकर
वह कोई
अपराध नहीं करता,,पर उपेक्षा......उसे
उसके जन्म पर सवाल सी लगी है.....!!!