Thursday 12 May 2016

ना तोड़ो

ना तोड़ो

वो शज़र जिसकी छाँव में कोई खेला था,
सूखा है अब, साँसे कुछ बाकी हैं...
साया है कुछ पत्तियों का, ना तोड़ो..

वो रखी हुई कलम कभी लिखती थी,
जिसमें कुछ शब्द, कुछ एहसासात रहे थे..
उस स्याही की बोतल को, ना खोलो

मकाँ की दहलीज़ पे फरिश्ते आते थे,
रौनक थी बेशुमार, दीवारें बोलती थीं..
अब है वो ज़ार-ज़ार, दहलीज ना छोड़ो ,

माँ हो गई है बूढ़ी, बाप रहता है बीमार
खामोश रहते हैं, नहीं है कोई तलबगार
सहारा हो तुम, उनसे यूँ मुँह ना मोड़ो..

हाँ ! कोई इश्क भी था तेरे आस पास,
चाहत थी, और बगावत भी थी साथ..
सब हैं कहाँ, उनसे रिश्ता ना तोड़ो 

ना तोड़ो ..!!

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