Thursday 5 May 2016

कोयल :)(:

चंचल पत्तों से हो हताश,
बोली कोयल करके विलाप...

क्यों तुम मुझ पर हँसते हो,
     मेरा कोई, न घर न बार..!
परिहास सदा क्यों करते हो
    
हर पंछी का है अपना राग,
    मैं हूँ श्यामा, है मधुर राग...!
वृक्षों पर बैठ कर करती हूँ 
इस जग का नित नया साज
    
बस हृदय लुभाती हूँ सबका,
    करती न नीड़ का इक प्रयास..

हर साल नये तुम उगते हो.
फिर मुझसे शोभा पाते हो

  फिर क्यों तुम मुझ पर हँसते हो


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