Sunday 6 November 2016

पलकें



देखो कभी इक बार झाँककर
मेरी निश्छल आँखों में ..
क्या रक्खा है झूठी दुनिया में...
और दुनिया की उड़ती राखों में..

मेरी आँखों की खिड़की से...
देखो मन मेरा, देखो अंदर की हस्ती को
छूकर रो दोगे तुम मुझको,
भूलोगे हँसती बस्ती को..

चाहोगे निकलना जब बाहर..
अँधेरे कोनों से डरकर
सोचोगे मुझे मैं क्या हूँ और क्यूँ..
फिर देखोगे मुझे आँखें भर भर

अधखुली खिड़कियों से भी तो
आते हैं स्वप्न लगाकर पंख..
ये वो पंछी हैं जिनके ऊपर..
ना छत कोई ना है कोई कर

खिड़कियाँ यूँ ही बस बनी रहीं..
जाने क्या आना बाकी है
ना बंद हुईं ना खुली रहीं
अब कौन प्रतीक्षा बाकी है ?

तुम वो कहानी लिखो..

मैं किरदार हूँ जिसका.. तुम वो कहानी लिखो

लिख दो तकदीर मेरी किसी कागज के टुकड़े पर..
लगा दो रंग मेरे कागजी मुखड़े पर ...
सुन लो उन आवाज़ों को जो कैद हैं काली स्याही में..
बिखरी बिखरी साँसों की रवानी लिखो..
तुम वो कहानी लिखो ....

रहा गाफ़िल मैं अपने एहसासों से
करता रहा उम्मीद ठंडक की.. सिर्फ प्यासों से..
तुम लिखो गीली मिट्टी.. बारिश सुहानी लिखो
तुम वो कहानी लिखो ...

मेरे चंद जख्मों की परवाह न करना
कुरेद देना फिर से, हाँ, आह न करना..
फिर सीकर दोबारा लफ्ज़ों में
जख्मों की जवानी लिखो,
तुम वो कहानी लिखो

वो किताब तुम सरेआम कर देना
महफिल में मुझे बदनाम कर देना
कह देना मुझे पागल.. दीवानेपन की निशानी लिखो

तुम वो कहानी लिखो
मैं किरदार हूँ जिसका

Karne Do...

Mai kho jata hun aksar unhi khwaabon mein,
Jo chhuu kar guzrate hain tere khwaabon ko..

Kyun hai aisaa.. mujhe sawaal karne do..

Aa jaaun tum tak tumse bina puchhe
Uljhaa dun tumhe apne sawaalon ke pichhe,
Fanaa kar dun khud ko tum mein

Kuchh yun pareshaan karne do..

Ae Dil !!

Sadaaein aati rehti hain door se sabr rakhnaa...
Ae dil ! Tu ghabrana mat...

wafaayein laazim hain par zara door se,
Saath dena mera, tu ghabraana mat
Utaar lenaa hoga mujhe khud ko uski nazro'n se...
Tu thamm saa jaana.. ghabraana mat
Nikaal kar tujhe uske dil se laaungaa mujh tak... sabr rakh..

Tu tuut naa jaana.. ae dil !  Tu ghabraana mat
Deewaano'n ki mehfil mein rehte rehte...
Deewana jo ho gaya hai tuu...

Tujhe samajhtaa hun mai.. ae dil ! tu ghabraana mat..