Saturday 7 May 2016

माँ

हे ! जननी...
इस जीवन का है भार बड़ा
ये जीवन तेरा साया है,
   तेरे साये की छाँव तले....
   रहना है....कर उपकार बड़ा ।

हे ! जननी ...
ज्यों पंछी बिना परों के हों,
ज्यों रात अमावस वाली हो..
   ज्यों सूर्यग्रहण का दिन हो वो
   तेरे बिन मैं हूँ, रिक्त घड़ा ।

हे ! जननी..
तूने पाला, तूने समझा,
तूने ही मुझे सँवारा है...
    तेरे ऊपर क्या लिक्खूँ मैं
    नतमस्तक हूँ, एकान्त खड़ा

हे! जननी....

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