Friday 3 March 2017

कहानी- पैराफिन सपने

पुरोहित दंपति के चेहरों पर बड़े दिनों बाद खुशी नज़र आई थी..
वर्षों बाद कोई उम्मीद पूरी होने वाली थी आज ! 
उस पुराने अनाथालय के चक्कर लगा लगाकर तो जैसे उनकी आधी उम्र गुज़र चुकी थी.. तब जाकर आज ये ख़बर आई कि सभी कानूनी कार्रवाई पूरी हो चुकी है और अब वो अपने "बेटे" को घर ले जा सकते हैं ।
११ साल पहले जब डॉक्टर ने बताया कि वे कभी माता पिता नहीं बन सकते.. लगा.. मानो किसी ने अँधेरे कुएँ में धक्का दे दिया हो..!

दोनों कुछ दिनों के लिये तो परेशान रहे लेकिन जल्द ही उन्होंने सोच लिया कि वो किसी बालक को गोद ले लेंगे जो उनके बुढ़ापे का सहारा होगा ..
लेकिन इसके लिये भी राह आसान कहाँ थी.. अनाथालय में संपर्क करना... कानूनी सलाह.. परिवार वालों की सहमति लेना और सबसे महत्वपूर्ण था- वो बालक दिखने में सुंदर हो और जिसकी पहचान "ठीक-ठाक" हो।

इसके लिये श्री पुरोहित ने अनाथालयों में जाकर पूरी छानबीन की.. कि शायद कोई ऐसा बालक हो कि जिसके माँ बाप कभी किसी दुर्घटना के शिकार हो गये हों..और उसे अनाथालय का द्वार दिखा दिया गया हो ।
कुछ साल बाद उन्हें ऐसे ही एक बालक की जानकारी मिली जिसके माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी ....! सुना था कि माँ बाप की पहली ही संतान था वो बालक ...
 पुरोहित जी ने अनाथालय में संपर्क करके बालक को गोद लेने की इच्छा व्यक्त की!
जहाँ उन्हें पता चला कि वो बिना कानूनी सलाह एवं अनुमति के बालक को नहीं ले जा सकते । बालक ढाई साल का था तब.. लेकिन उन्होंने उसे उसी क्षण अपनी संतान मान लिया जब श्रीमती पुरोहित की साड़ी का पल्लू उसने खेल खेल में पकड़ लिया था... बड़ी बड़ी आँखों और सुंदर चेहरे वाले इस बालक ने दोनों का मन मोह लिया था..

विधाता भी ना जाने कैसे कैसे खेल रचता है...
बिना उम्र देखे ही जवान माँ बाप को अपने पास बुला लिया.. पीछे बचा तो ये नन्हा बालक..! कुछ दिनों तो माँ-माँ कहकर रोया लेकिन कब तक याद रखता... धीरे धीरे माँ के बिना रहने और सोने की आदत पड़ गयी.. अनाथालय में बच्चों की देखभाल करने वाली आया धरमा को देख इठलाने लगता । 
वो भी मुस्करा कर प्यार से सिर पर हाथ फेर देती । 

नाम ज्ञात नहीं था तो सभी उसे सुंदर बुलाने लगे.. जो उसकी शक्ल सूरत के अनुकूल था । 

पुरोहित दंपति अक्सर कई बहुमूल्य खिलौने और मिष्ठान्न लेकर सुंदर के पास जाते और जी भर कर लाड़ जताते.. अन्य बच्चों को भी आवश्यकता का सामान दे आते । परंतु अन्य बालकों को कभी पुरोहित जी हाथ ना लगाते .. ये सोचकर कि ना जाने किनकी संतानें हों ये बालक ! 

 सुंदर के माँ बाप की सड़क दुर्घटना में हुई मौत के बाद .. केस की छानबीन चलती रही.. वकील ने बताया कि जब तक केस पूरी तरह से बंद नही हो जाता, वे सुंदर को नहीं ले जा सकते ! छानबीन काफी लंबी चलती रही, कई रिश्तेदारों से बातचीत भी हुई परंतु ना जाने क्यूँ कोई सुंदर को रखने को राजी ना हुआ... और कोई हल ना निकला.. सुंदर अनाथ का अनाथ ही रहा!

पुरोहित जी को ये जान बड़ा हर्ष हुआ कि चलो सुंदर के रिश्तेदारों ने उसे रखने से मना कर दिया !!

तीन साल व्यतीत हो गये, जान ना पड़ा ! 
सुंदर को भान हो गया कि "ये" ही वो लोग हैं जिनके घर सुंदर को जाना है.. ! एक दिन वो भी इनकी बड़ी गाड़ी में बैठकर घूम सकेगा ..!

अनाथालय के कर्मचारी सुंदर के भविष्य को उज्ज्वल जान, अन्य बच्चों की अपेक्षा उससे अच्छा व्यवहार करते । 

पुरोहित दंपति ने भी सारी तैयारियाँ कर रखी थीं कि जैसे ही सुंदर घर आता है,, उसका दाखिला शहर के बड़े विद्यालय में कराएँगे । 

कहते हैं सपने तो सपने होते हैं.. किसी पंछी की भाँति, कभी भी कहीं भी पहुँच जाते हैं...
छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब.. सपने भेदभाव नहीं करते.... बल्कि बाल मस्तिष्क में तो अपेक्षाकृत गहराई से जड़ें जमा लेते हैं । 

सुंदर भी सपनों की उड़ान भरने लगा.. वो छोटा बालक, "माता-पिता" के साथ रहने, विद्यालय जाने के सपने देखने लगा !
आज सुबह से सुंदर उछलता घूम रहा था... घर जो जाना था !!

जल्दी से दोपहर हो, और वो यहाँ से जाये... साथ ही थोड़ा दुख भी, सुध संभलने से ही संगी साथी जो साथ थे, आज वो छूट जायेंगे । तोतली ज़ुबान में कहता घूम रहा था-
" मैं मिलने आऊँदा छबछे.. तोई लोना नई"

धरमा ने बड़े प्यार गोद में बिठाकर खाना खिलाया, मुँह धोया ।
दोपहर हुई, पुरोहित दंपति अनाथालय पहुँचे....
सुंदर दौड़कर उनके पास गया और हमेशा की तरह पैरों से चिपट गया.. अजीब सी चमक थी उसके चेहरे पर !
तब तक पुरोहित जी के वकील भी अनाथालय पहुँच गये । सारा कार्रवाई चल ही रही थी कि उनके वकील ने पुरोहित जी से अकेले में कुछ बात करने की इच्छा व्यक्त की..
पुरोहित जी वकील के साथ थोड़ी दूरी पर जाकर बड़ी देर तक बातचीत करते रहे... वकील ने बताया कि उस दुर्घटना में मरे सुंदर के माँ-बाप ने घर से भागकर ब्याह किया था ..माँ किसी अच्छे परिवार से थी परंतु बाप नीची जाति का था ! सुंदर उनके ब्याह के पहले ही पैदा हो चुका था। 

इतना सुनते ही पुरोहितजी ने निश्चय कर लिया कि ऐसा बालक उनके घर कतई नहीं जा सकता जिसके माँ बाप ही सामाजिक ना रहे हों...!
वापस आये तो उनका चेहरा सख्त था.. कोई भाव नहीं..

श्रीमती पुरोहित के कहने पर कि क्या रात यहीं कर देंगे,, चलना नहीं है ?
पर पुरोहित जी ने सिर्फ इतना ही कहा- "चलो !
लेकिन सिर्फ हम.. ये हमारे साथ नहीं जा सकेगा" कहकर पुरोहित जी ने सुंदर की ओर इशारा किया
श्रीमती पुरोहित हैरान थीं.. कि ऐसा क्या हुआ कि अचानक ही पुरोहित जी इस तरह से व्यवहार करने लगे !

वो कुछ कह पातीं उसके पहले ही पुरोहित जी गाड़ी स्टार्ट कर चुके थे.. श्रीमती जी उनके पीछे पीछे गाड़ी में बैठ गयीं 
सुंदर वहीं, धरमा के पल्लू में मुँह छिपाए धीरे धीरे सुबकता रहा था.. !!

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