Tuesday 7 February 2017

स्मृति-दर्पण


१- 
एक विचरण करती हुई तृष्णा ..
जो मुक्त नहीं करती
मुझे

एक ठहरा हुआ सरोवर..
जो बहता नहीं
मुझसे,
कुछ क्षणों की स्मृतियाँ
कि मैं बहा दूँ जिनमें ।।

२-
पग रुक गये
श्वास थम गयी
नैन झुक गये
वो आहट हुई
स्मृति जगी
संशय मिटा
बादल हटा
चाहा जिसे..
देखा वही
हाँ देखा वही ।।
३-
उस रात्रि..
वृक्षों से टपकते वर्षाजल से
कुछ बंदी सरगम मैंने कीं
उस रात्रि
तड़कती चपला में..
कुछ छोड़ी किरणें मैंने थीं..

मैं चपल-रश्मि में तुम्हें मिलूँ
तुम वर्षारस में मुझे मिलो ।।


स्रोत- स्मृतियों के बिंब धुँधला के सो गये 




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