Monday 20 March 2017

वर्षा और एकांत !

छत की कोरों से टपकते ठंडे, अनछुए पानी की बूँदों से भीगे आधे-अधूरे पाँव..
रात के दूसरे पहर में बजती आहत-अनहद ध्वनियों से ठिठकती हृदय गति..
तड़कती, चमकती बिजली के बिखरे अस्तित्व से कंपकंपाते पत्ते..
और,
हवाओं की गति से स्वयं को बचाकर.. जलते रहने की, दीये की संकल्प-शक्ति..
कितना कुछ है इस रात के एक बरसाती पहर में...
किंतु मन के अवचेतन को शून्य ही दृश्य होता हो शायद
अन्यथा, इस  हल्की-फुल्की वर्षा जनित आँधी में,
मेरे अंतर की गहन एकांतता..
निश्चित ही
किसी बूँद में मिल.. बह गयी होती !



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