Wednesday 1 February 2017

पत्ते आ जाएँगे


पत्ते आ जायेंगे ..

सभी ऋतुएँ श्रृंगार करती हैं...
जैसे बरसाती मोतियों से या,
कपास सी बर्फीली चोटियों से
श्रृंगार करती हैं
कुछ ऋतुएँ...
उतार देती हैं पुराने वसन
त्याग देती हैं पुरानी स्मृतियों को
इन मधुर श्रृंगारिक कलापों में..
पत्ते झड़ जायेंगे...
फिर.... फिर पत्ते आ जायेंगे

आकाश की चलनी से
जब रस प्रकृति बरसायेगी..
नदियाँ चल पड़ेंगी सूखे अधरों के साथ
अपना हिस्सा लेने..
किनारे सागर पा जायेंगे..
फिर .... फिर पत्ते आ जाएँगे

रात के गीतों में..
दिन के संगीतों में..
उपवन के अँधेरों में..
सागर की लहरों में..
कई पंछी, धुन मिलन के गुनगुनायेंगे..
फिर... फिर पत्ते आ जाएँगे

कुछ दिन शेष और कुछ रातें
टहनियों पर तब तक चाँद का बसेरा होगा
घोसलों पर शिकारियों का पहरा होगा
जो बच पायेंगे.. वो बच जायेंगे..

फिर... फिर पत्ते आ जाएँगे

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