Friday 6 January 2017

मेरे मालिक !

जिस दिन परदे का उठना होगा..
मेरा क़िरदार से बाहर आना होगा
उतरकर मंच से..
उतारकर नक़ाब को
हाथ उस शख्स से मिलाकर
एक बार पूछूँगा मुस्कराकर..

कहो! कुछ बाकी रह गया क्या ?
मैंने जी लिया वो किरदार
रो लिया, हँस लिया.. और,
हँसाया, रुलाया तमाम चेहरों को..
क्या अब भी कुछ बाकी है ??
देखो,, कितना इत्मिनान महसूस हो रहा है..
होने दो अभी..
कुछ पल तो सुकून से, सोने दो अभी..
हाँ, जो गलतियाँ इस किरदार में कर दी हैं मैंने..
हरजाना तो देना होगा..
पूरा वो करने के लिये..
किसी किरदार में, फिर से आना होगा..!

बस दरख़्वास्त मेरे मालिक एक मान लो !
दे दो साथ फिर से उन्हीं साथियों का...
जो साथ थे मेरे उसी मंच पर..
जो अब है सूना, मेरे यहाँ होने पर

हो सके तो किरदार छोटा देना...
थक गया था इस बार.. थोड़ी मोहलत देना..
देना ऐसा, कि सबकी आँखों में पानी हो..
जब वापस लौटूँ...
 मैं उन्हें, वो मुझे पुकारें...
मेरे वहाँ ना होने पर..
मुझे रूहानी शोहरत देना !!

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