उतरती हुई धवल-पीत किरणों के मध्य
अपराजित सुबह के स्वागत में..
अलसाती हुई कलियाँ
इतराती हुई पवनें कुछ यूँ झुकती हैं
ज्यों..
मदमाती, ठहरी, काली ठंडी रात में
श्वेत शिला पर बैठी प्रेयसी के सम्मुख,
ना चाहते हुए भी..कोई कामजित योद्धा..
झुककर शस्त्र डाल दे
समर्पित कर दे स्वयं को उसके समक्ष...
लक्ष्य पूर्ण कर,
किसी अविचलित,
जितेन्द्रिय योगिनी की भाँति वह,
जैसे..
उठकर चल दे .. छोड़कर, छलकर उसे,
छीनकर उससे उसका समस्त तेज...
कुछ यूँ ही..
यह बेला भी त्याग देती है जग को
एक निश्चित काल के लिये..
प्रकृति द्वारा
रात्रि भर समेटे हुए रंगीन सौन्दर्य को,
संध्या तक बटोरकर... छीनकर समस्त आभा..
शेष अँधकार ...!!
अपराजित सुबह के स्वागत में..
अलसाती हुई कलियाँ
इतराती हुई पवनें कुछ यूँ झुकती हैं
ज्यों..
मदमाती, ठहरी, काली ठंडी रात में
श्वेत शिला पर बैठी प्रेयसी के सम्मुख,
ना चाहते हुए भी..कोई कामजित योद्धा..
झुककर शस्त्र डाल दे
समर्पित कर दे स्वयं को उसके समक्ष...
लक्ष्य पूर्ण कर,
किसी अविचलित,
जितेन्द्रिय योगिनी की भाँति वह,
जैसे..
उठकर चल दे .. छोड़कर, छलकर उसे,
छीनकर उससे उसका समस्त तेज...
कुछ यूँ ही..
यह बेला भी त्याग देती है जग को
एक निश्चित काल के लिये..
प्रकृति द्वारा
रात्रि भर समेटे हुए रंगीन सौन्दर्य को,
संध्या तक बटोरकर... छीनकर समस्त आभा..
शेष अँधकार ...!!
Epic one.. keep writing
ReplyDeleteShukriya :)
DeleteIt takes you to that visualization...Keep up !!
ReplyDeleteशुक्रिया ��
Deleteकितना सुंदर दर्शन है.....
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