मेरा अंतस घबराकर पुकारता है तुम्हें
नेत्र एकटक द्वार पर स्थिर हो जाते हैं
हृदय के पट खड़-खड़ की ध्वनि से संपूर्ण तन स्पंदित कर देते हैं
तुम्हारे पूर्व आश्वासनों का मुझे विस्मरण हो चुका है
यह कदापि मेरी भूल नहीं...
तुम तो एक स्तंभ की भाँति मेरे हृदयस्थल में विराजमान हो..
परंतु तुम्हारी आशा के विपरीत....
मैंने गँवा दिया वह कौशल
कि पा सकूँ तुम्हें निर्विवाद ....
और तुम ... तुम मेरी आशा के विपरीत ..
निरे कठोर ही रहे...!
नेत्र एकटक द्वार पर स्थिर हो जाते हैं
हृदय के पट खड़-खड़ की ध्वनि से संपूर्ण तन स्पंदित कर देते हैं
तुम्हारे पूर्व आश्वासनों का मुझे विस्मरण हो चुका है
यह कदापि मेरी भूल नहीं...
तुम तो एक स्तंभ की भाँति मेरे हृदयस्थल में विराजमान हो..
परंतु तुम्हारी आशा के विपरीत....
मैंने गँवा दिया वह कौशल
कि पा सकूँ तुम्हें निर्विवाद ....
और तुम ... तुम मेरी आशा के विपरीत ..
निरे कठोर ही रहे...!
Awesome! Its actually awesome paragraph, I have got much clear
ReplyDeleteidea concerning from this post.